गंभीर और स्तरीय लेखन के लिए पढना जरूरी -नरेंद्र सिंह नेगी

उत्तराखंड, देहरादून,गंभीर और स्तरीय लेखन के लिए जरूरी है कि रचनाकार  खूब पुस्तकें पढ़ें। यह बात प्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी ने प्रिंस हनी होटल देहरादून में आयोजित ‘गढ़वळी वर्णमाला, लिंग अर कविता, कहानी लेखन ‘विषय पर आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि कही। उन्होंने ‘खैरि का अंधेरों मा खोज्यां बाटू, सुख का उजाळा मा बिरड़ी गयूँ मि (विपत्ति के अंधेरों में खोजे हुए रास्ते, सुख के उजाले में भटक गया मैं ) गाकर सबको भाव विभोर कर दिया। उन्होंने कहा कि भाषा को सम्मान दिलाने वालों के प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए। यह  दो दिवसीय कार्यशाला कलश साहित्यिक ट्रस्ट रूद्रप्रयाग द्वारा आयोजित की गई। कार्यशाला के पहले सत्र से पूर्व कलश ट्रस्ट के संयोजक ओमप्रकाश सेमवाल ने कहा कि कलश की साहित्यिक सृजन यात्रा के 21वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस अवधि में कलश के द्वारा 548 कार्यक्रम और 355 कवि सम्मेलनो का आयोजन किया जा चुका है।  भाषाविद रमाकांत बेंजवाल ने कहा कि गढ़वाली भाषा के मानकीकरण पर अस्सी के दशक से बात हो रही थी पर अभिलेखीकरण न होने के कारण इन प्रयासों को सही दिशा नहीं मिल पाई। इस अवसर पर रोहित गुसाई ने वेदों में दिए गए सूक्तों के आधार पर गढ़वाली में शब्दों की व्यूत्पत्ति पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा गढ़वाली शब्दों की व्यूत्पत्ति से सम्बंधित वेबसाइट तैयार की जा रही है। गढ़वाली कविता के भाव पक्ष पर देवेंद्र प्रसाद जोशी द्वारा विचार व्यक्त किए गए। सत्र का संचालन करते हुए गणेश खुगशाल गणी ने कहा कि गढ़वाली भाषा के लिए हमारे द्वारा किया जा रहा प्रयास आने वाली पीढ़ी के लिए धरोहर के रूप में कार्य करेगा।  डॉ. नन्द किशोर हटवाल ने कहा कि वर्ण माला सिर्फ लिखने का मसला नहीं है बल्कि पढ़ने का भी है। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रेम मोहन डोभाल ने कहा कि भाषा के संरक्षण के लिए ऐसे प्रयास समय -समय पर किए जाने चाहिए। गढ़वाली कविता का इतिहास पर गिरीश सुन्द्रियाल, गढ़वाली काव्य के उदभव एवं वैशिष्टय पर डॉ. जगदम्बा कोटनाला और गढ़वाली कविता का शिल्प विषय पर बीना बेंजवाल ने अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर संजय शर्मा दरमोडा, आलोचन पुरोहित, प्रेम सिंह बिष्ट, विनोद भट्ट, भगवान सिंह नेगी, दिवाकर गैरोला, रमन शैली, राजेंद्र प्रसाद सेमवाल और आशीष डंगवाल को सम्मानित किया गया। सुरेश स्नेही की पुस्तक निठूर विधाता और अश्विनी गौड़ की पुस्तक उत्तराखंड की लोक परम्परा में विज्ञान पुस्तकों का भी लोकार्पण किया गया। इसके बाद कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसका संचालन शांति प्रकाश जिज्ञासु और प्रेम लता सजवाण ने किया। रात तक चले कवि सम्मेलन में साठ से अधिक कवियों ने अपनी कविताएं प्रस्तुत की। गणेश खुगशाल गणी ने इस कवि सम्मेलन को ऐतिहासिक बताते हुए प्रस्तुत कविताओं को प्रकाशित करने का सुझाव दिया। दूसरे दिन गढ़वाली में लिंग भेद, कथा लेखन, वचन पर सत्र चलाये गए। इन सत्रों का संचालन गणेश खुगशाल गणी ने किया। इन सत्रों में डॉ. वीरेंद्र बर्त्वाल, मदन डुकलान, डॉ. सविता मोहन, मुकेश नौटियाल जगमोहन रावत जगमोरा, गजेंद्र नौटियाल और विमल नेगी ने अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर सत्यानंद बड़ोनी की पुस्तक  उत्तराखंड हिमालय का लोकार्पण भी किया गया। Report by Dr. Umesh Chamola

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