प्रकृति के सुकुमार कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल -कालिका प्रसाद सेमवाल

पुण्यतिथि पर विशेष आलेख

*प्रकृति का सुकुमार कवि – चन्द्रकुंवर बर्त्वाल*
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चंद्रकुंवर बर्त्वाल कब हिन्दी संसार में आये और कब चले गये?
इसका किसी को पता न लगा पर उनके रूप में हिन्दी संसार ने अपना सबसे बड़ गीतिकाव्य रचयिता पाया और खो दिया। इस प्रकार की धारणा उनकी कविताओं को देखने से मन में बनती है। हिमालय में निश्चित समय पर गाने वाले काफल पाक्कू पक्षी के गान की तरह चन्द्र‌कुंवर के सुरीले मुक्तक मन और आत्मा को काव्य सौन्दर्य के एक नये लोक में उठा देते हैं और वह आनन्द अन्त में इस करुणा और कसक के साथ समाप्त हो जाता है कि इस प्रकार के सौन्दर्य का गान करने वाला कवि इतनी जल्दी हम से विलग हो गया। उसकी वाणी के परिपाक से हमारी भाषा और भी पुष्ट होती पर ऐसा न हो सका। जो कुछ भी 28 वर्ष की आयु में उनसे हमें मिल सका, वही अदभुत है। उनकी लिखी कविताओं की संख्या लगभग एक हजार तक है और शुद्ध मुक्तक के आनन्द की दृष्टि से कितनी ही इतनी सुन्दर हैं कि ये निश्चित हिन्दी संसार की सम्पत्ति कही जा सकती हैं।
चन्द्र कुंवर बर्त्वाल का जन्म रुद्रप्रयाग जिले के सुरम्य गांव मालकोटी में 20अगस्त 1919को हुआ । इनकी प्रारंभिक शिक्षा उडामांडा, मिडिल नागनाथ, हाई स्कूल मैसमोर पौड़ी गढ़वाल उच्च शिक्षा लखनऊ आदि स्थानों पर हुई।
केदारनाथ के पास पाँवलिया उनका ग्राम था जिसे दो मुक्तकों में उन्होंने अमर कर दिया है। प्राचीन भारतीय इतिहास में एम० ए० की शिक्षा प्राप्त करने के लिए वे लखनऊ विश्व विद्यालय में रहे पर विपरीत स्वास्थ्य ने उन्हें फिर हिमालय के कोटर में ले जाकर बन्द कर दिया और 7 वर्षों तक रोगों से युद्ध करते हुए 28 वर्ष 24 दिन की अवस्था में 14 सितम्बर 1947 को यह अमर कवि भौतिक रूप से विदा हो गया।

हिमालय के उत्संग में भरा हुआ असाधारण कल्लोल और कलरव है। साथ ही उसका जो धीर मौन है, उन दोनों से चन्द्रकुंवर का हृदय पूर्ण था । हिन्दी जगत में बाहर आकर वे विज्ञापन यश की खोज में न निकल सके। यह उनकी कविता के लिए हितकर ही हुआ। उनके मनोभाव के रुके हुए सेतु इधर-उधर न बह कर कविता में ही फूट निकले जिससे उनकी भाषा में उनके भावों में एक अपूर्व बेगवती शक्ति आ गयी। ज्ञात होता है कि अंतरिक्ष में रुके

बाँध टूटकर पृथ्वी की और वेग से बह रहे हैं। अर्थ और छन्दों पर चन्द्रकुँवर का असामान्य अधिकार था जैसा कि प्रतिभा सम्पन्न कवि में होना ही चाहिए। अपनी कविताओं को अपने जीवन काल में प्रकाशित रूप में देखने की या तो उनमें उत्सुकता नहीं हुई या गिरते हुए स्वास्थ्य ने उनका साथ नहीं दिया। अगस्त्यमुनि के एक हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक पद पर काम करने लगे परन्तु कुछ महिनों बाद अचानक उनका स्वास्थ्य ख़राब हो गया तथा प्रवन्धक से भी विचार न मिलने के कारण पद त्याग कर दिया तथा अपने गांव पंवालिया चले गए वहीं पर साहित्य साधना में लग गए उन्होंने हिन्दी संसार को अपने लिए अगम्य समझ लिया था और समस्त प्रवृतियों को अपने आप में समेट कर काव्य देवी के चरणों में अर्पण करते हुए उनका जीवन शेष हो गया।
चन्द्र कुँवर की कविताओं में मृत्यु के विषाद और जीवन के उल्लास का एक विलक्षण संयोग हुआ है। सन् 1940 में भीषण रोगों से पीडित होने के बाद मृत्यु तक पहुंचते में उनके अपने शब्दों में सुख न मिला जीवन को चैन नहीं।

मृत्यु के द्वारों पर बैठ कर उन्होंने यम को अपना मित्र बनाना चाहा जिससे उसी बहाने जीवन को शांति मिले। मृत्यु की इस साक्षात तीव्र अनुभूति के मध्य में कवि ने अपनी’ यम’ शीर्षक कविता लिखी जो कि शब्दों की प्रचण्ड शक्ति एवं उत्तरहीन उपालंभ के गुणों से संसार में यम विषयक कविताओं में श्रेस्ठतम स्थान पाने योग्य है।
यहां प्रस्तुत हैं वे तीन मुक्तक, जिनका उल्लेख है जिनमें चंद्रकुंवर बर्त्वाल ने अपने पांवलिया ( बष्टी) रुद्रप्रयाग के अपने घर का वर्णन किया है।

मेरा घर
जहाँ विकल हिम शैलों से करते मृदु गुंजन झरने,
जहाँ नील नभ की छवि को मेघ सदा लगते भरने
चीड़ों में गुंजन करती चलती मादक पवन जहाँ,
तरु छाँहों से ढके हुए खड़े हुए हैं भवन जहाँ,
थे रत्नों से शैल भरे, थी शैलों से भरी मही
हिमगिरि के अंचल में था मेरा घर भी यहीं कहीं!

आँगन में थी खड़ी हुई छोटी-सी दाड़िम डाली,
मधु को देख उमड़ आती थी जिस के मुख पर लाली !
मेरे घर पर चढ़ फैली थी द्राक्षा की एक लता,
और दूर कलरव करती जाती थी चंचल सरिता
लहरों में जिस के थीं हंसों की पाँतें तैर रहीं
इसी नदी के तट पर था मेरा घर भी यहीं कहीं !

अमरपुरी
मुझे प्रेम की अमरपुरी में
अब रहने दो,
अपना सब कुछ देकर
कुछ आंसू लेने दो।

वर्ष1991 में कुछ जागरूक नागरिकों व साहित्यकारों द्वारा उनकी स्मृति में पहला चन्द्र कुंवर बर्त्वाल स्मृति समारोह आयोजित किया गया पहले स्मृति समारोह के संयोजक कालिका प्रसाद सेमवाल अध्यक्ष उमा मैठाणी सचिन पूर्व विधायक प्रताप सिंह पुष्पवाण रमेश पहाड़ी, प्रकाश थपलियाल,शैला रानी रावत, पुष्कर सिंह कंडारी आदि अनेक लोग थे।
लगातार बारह वर्षों तक स्मृति समारोह मयकोटी, मालकोटी, नागनाथ पोखरी आदि स्थानों पर आयोजित होता रहा। बीच में किन्हीं कारणों से स्मृति समारोह बाधित रहा पुनः अगस्त्यमुनि के कुछ जागरूक नागरिकों द्वारा चन्द्र कुंवर बर्त्वाल स्मृति समारोह अविरल रुप से आयोजित किया जाता रहा है। – लेखक जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान रूद्रप्रयाग से सेवानिवृत्त शिक्षक हैं।

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