जब मनुष्य स्वंय करेगा प्रकाश संश्लेषण
यह शीर्षक आपको हैरान कर सकता है, परन्तु आधुनिक विज्ञान के लिए कुछ भी असम्भव नही है।
एक दिन यह वैज्ञानिक सोच साकार रूप अवश्य लेगी।
जिस प्रकार से जेनेटिक इंजीनियरिंग में उत्तरोत्तर तकनीकी का विकास हो रहा है, वो दिन दूर नही जब मनुष्य स्वयं ही प्रकाश संश्लेषण कर सकेगा परन्तु यह कैसे सम्भव होगा?
इसके लिए हम जगत प्रॉटिस्टा के संघ युग्लीनोजोआ के एक कोशिकीय जीव युग्लीना के बारे में विचार करते हैं । यह एक ऐसा जीव है जिसमे जन्तु तथा पादप दोनों वर्गों के लक्षण पाए जाते हैं। यह एक अद्भुत और विलक्षण जीव है। प्रकाश की अनुपस्थिति में यह जंतु कोशिका की भांति व्यवहार करता है अर्थात जिस प्रकार जंतुओं में पोषण की प्रक्रिया होती है और पांच चरण होते हैं अंतर्ग्रहण (भोजन को अंदर लेना ), पाचन, अवशोषण, स्वांगीकरण (पोषक तत्वों का कोशिका द्रव्य में विलीन होना ) और बहि:क्षेपण (मल त्याग ), उसी भांति यूग्लीना भी व्यवहार करता है।
किंतु जब यूग्लीना को प्रकाश मिलता है तब प्रकाश की उपस्थिति में यूग्लीना में हरित लवक का निर्माण होता है और हरित लवक में उपस्थित क्लोरोफिल वर्णक के कारण यूग्लीना में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया होती है और यह अपना भोजन स्वयं बनाता है जो कि साधारण शर्करा या ग्लूकोज के रूप में होता है।
इस प्रकार यूग्लीना जंतु कोशिका तथा पादप कोशिका दोनों की भांति व्यवहार करता है, तो अब प्रश्न आता है कि भविष्य में मानव किस प्रकार प्रकाश संश्लेषण कर पाएगा?
हम सभी जानते हैं कि हमारा शरीर कोशिकाओं का बना है जिनकी संख्या अरबों खरबों में है। माना जाता है कि एक मानव शरीर में 200 से 300 अरब खरब कोशिकाएं होती हैं लेकिन हमारी बाह्य त्वचा है जिसे हम स्किन कहते हैं इसमें लाखों करोड़ों कोशिकाएं होती जिनमें मिलेनोसाइट्स कोशिकायें भी होती हैं।
मेलानोसाइट्स विशेष वर्णक-उत्पादक कोशिकाएं हैं जो त्वचा, आंखों, बालों के रोम और शरीर के अन्य भागों में पाई जाती हैं । वे मेलेनिन के उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं, वह वर्णक जो त्वचा और बालों को उसका रंग देता है।
यह मिलेनिन तब बनता है जब हम धूप सेकते हैं या जब हमारी त्वचा पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब हमारी कोशिकाओं में स्वत: ही मिलेनिन का निर्माण होता है और इस कारण हमारी कोशिकाएं गहरे रंग की होने लगती हैं।
अब यदि कोशिकाओं में अधिकाधिक मिलानिन का निर्माण होता है तो कोशिकायें उतनी ही अधिक गहरे रंग की या काली होती जाएगी, जैसे अफ्रीका के देशों में अधिक सूर्य का प्रकाश पड़ने से वहां के लोग अधिक मेलेनिन के कारण डार्क स्किन वाले होते हैं।
जबकि यूरोपीय देशों में धूप बहुत कम मिलती है अतः उनकी कोशिकाओं में बहुत कम मिलेनिन बनता है, और उनकी अस्थियों को मजबूत बनाने के लिए केल्सिफेरोल विटामिन डी की आवश्यकता होती है, किन्तु धूप न मिलने के कारण उनकी कोशिकाओं का थोड़ा बहुत मिलेनिन भी हड्डियों की ओर स्थानांतरित हो जाता है।
इस कारण उनकी कोशिकाएं मिलेनिन वर्णक से लगभग रहित हो जाती हैं और श्वेत हो जाती हैं। इस कारण यूरोपीय लोग बहुत गोरे होते हैं।
तो अब बात करते हैं की भविष्य में प्रकाश संश्लेषण किस प्रकार संभव होगा?
यदि ऐसा हो सके कि जेनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक से त्वचा की मिलेनोसाइट्स, क्लोरोसाइट्स में रूपांतरित हो जाये और उनमें मिलेनिन वर्णक की जगह क्लोरोफिल वर्णक बनने लगे, यदि भविष्य में ऐसा कुछ जीन आधारित बदलाव हो पाए तो मिलेनोसाइट्स कोशिकाएं, हरित लवक में रूपांतरित हो जाएंगी। इन रूपांतरित कोशिकाओं में हरित लवक बनने लगेगा ठीक वैसे ही जैसे यूग्लीना में प्रकाश की उपस्थिति में हरित लवक बनने लगता है और पादप कोशिका की भांति प्रकाश संश्लेषण होने लगता है। प्रकाश की अनुपस्थिति में हरित लवक गायब हो जाता है और वह जंतु कोशिका की तरह व्यवहार करने लगता है। इसी तरह मनुष्य की कोशिकाओं में भी प्रकाश संश्लेषण होने लगेगा और भोजन के रूप में साधारण शर्करा या ग्लूकोज का निर्माण होने लगेगा। यदि ऐसा होता है तो यह विज्ञान के क्षेत्र में तथा मानव जीवन में सबसे बड़ी क्रांति होगी ।अतः संभव है कि भविष्य में इन जेनेटिकली मोडिफाइड (जीन आधारित बदलाव से बनी )मिलेनोसाइट्स कोशिकाओं के कारण मनुष्य भी प्रकाश संश्लेषण कर सकेगा और अपना भोजन स्वयं बना सकेगा। मेरा यह लेख भविष्य में होने वाली ऐसी जेनेटिकली मोडिफाइड परिकल्पना पर आधारित है इसके लिए हमारा आधुनिक विज्ञान कितनी तैयारी करता है यह तो समय ही बताएगा।
-लेखक राजकीय इंटर कॉलेज खरोड़ा, चकराता देहरादून में प्रवक्ता जीव विज्ञान के रूप में कार्यरत हैं।