उत्तराखंड, अल्मोड़ा। अपनी मातृभाषा के संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से उत्तराखंड लोक – भाषा साहित्य मंच – दिल्ली और भारत ज्ञान विज्ञान समिति जिला इकाई- अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के संयुक्त तत्वावधान में संकुल केन्द्र – बासोट (भिकियासैण) में विगत 18 अप्रैल, 2025 से संचालित मातृभाषा कुमाउनी – गढ़वाली की 15 कक्षाओं के संचालन के उपरांत आज मातृभाषा कक्षा का समापन हुआ।
समापन अवसर पर मुख्य अतिथि हेमन्त कुमार व मंचस्थ विशिष्ट अतिथियों नन्दकिशोर उप्रेती, त्रिभुवन जलाल और मोहनचन्द्र गड़ाकोटी द्वारा ज्ञान की अधिष्ठात्री माँ सरस्वती की प्रतिभा के सम्मुख दीप प्रज्वलन के साथ समापन सत्र का शुभारंभ किया गया। इसके उपरांत प्रतिभागी बच्चों द्वारा सभी मंचस्थ अतिथियों का स्वागत बैज अलंकरण व पुष्प गुच्छ भेंट कर किया गया। मंचस्थ अतिथियों में राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय – बासोट के प्रधानाध्यापक दयाशंकर गिरी, विद्यालय के पूर्व शिक्षक सतीश कुमार, चित्रा भण्डारी,विशिष्ट अतिथि गंगा देवी की उपस्थिति रही। इस अवसर पर सोम्या, आरुष, लक्षिता और जानवी द्वारा कुमाउनी वंदना ” देणी है जाये माँ सरस्वती ” व स्वागत गीत “स्वागतम् स्वागतम ” का वाद्य यंत्रों हारमोनियम व तबले के साथ प्रस्तुत किया गया। वाद्य यंत्रों के वादन में त्रिभुवन जलाल व मोहन चन्द्र गड़ाकोटी द्वारा संगत दी गई। मातृभाषा कक्षा के समापन समारोह के मुख्य अतिथि द्वारा अपनी मातृभाषा के संरक्षण संवर्धन के लिए इस प्रकार की कक्षा को उपयोगी माना गया । विशिष्ट अतिथि नंद किशोर उप्रेती ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि वर्तमान समय में हम अपनी मातृभाषा कुमाउनी को भूलते जा रहे हैं। आज के बच्चे बहुत से कुमाउनी शब्दों की जानकारी नहीं रखते हैं। इसके पीछे वर्तमान बदलती हुई परिस्थितियाँ हैं । हम आज अपने साहित्य और संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। दयाशंकर गिरी द्वारा बच्चों से इन कक्षाओं में सीखे गये ज्ञान का अपने व्यवहार में उपयोग करने को कहा। सतीश कुमार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 में भी मातृभाषा में शिक्षण दिये जाने का उल्लेख किया गया है। त्रिभुवन जलाल द्वारा अपनी मातृभाषा को बचाये रखने के लिए हम सबको इसे अपने घरों में अपनी बोलचाल में लाने पर जोर दिया। इसके उपरांत उदिती कड़ाकोटी ने 15 दिवसीय मातृभाषा कक्षा की समीक्षा प्रस्तुत की। आरुष ने ‘बेडू पाको बारुमासा ‘की सुंदर प्रस्तुति दी। उदिती व चित्रा ने ‘जय-जय हो बदरीनाथ’ लोकगीत की सुंदर प्रस्तुति दी।सभी बच्चों ने ‘उत्तराखंड मेरी मातृभूमि ‘ को संगीत के साथ समुधुर स्वर मे गाया। कार्यक्रम संयोजक कृपाल सिंह शीला द्वारा गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ द्वारा रचित गीत ‘ततुक नि लगा उदेख’ बच्चों को सुनाया गया । समापन सत्र में मातृभाषा कक्षा संयोजक द्वारा मंचस्थ अतिथियों नन्दकिशोर उप्रेती,त्रिभुवन जलाल, सतीश कुमार, मोहनचन्द्र गड़ाकोटी का शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया। दीपक देशवाल,जानवी डंगवाल, सोम्या, मोहित, मयंक बेलवाल,उदिती, नंदिनी,देव वर्मा, पल्लवी,कामना,हर्षिता भण्डारी, संध्या गोस्वामी को मातृभाषा कक्षा में पूर्ण उपस्थिति के लिए सम्मानित किया गया। अन्य सभी प्रतिभागियों को भी पैंन,पेंसिल, स्कैच पैन प्रदान कर सम्मानित किया गया। मातृभाषा कक्षा के समापन दिवस पर 22 बच्चों की उपस्थिति रही।संयोजक मातृभाषा कक्षा कृपाल सिंह शीला द्वारा उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच के संरक्षक विनोद बछेती, संयोजक दिनेश ध्यानी,मुख्य सहयोगी दयाल नेगी, रेखा चौहान, तुलसी भट्ट, पूरन चन्द्र काण्डपाल, डॉ. चन्द्र प्रकाश फुलोरिया, डॉ.आर.के.ठकुराल, रमेश हितैषी,डॉ. हयात रावत, गिरीश चन्द्र बिष्ट ‘हँसमुख’ जगमोहन सिंह रावत ‘जगमोरा’, रमेश सोनी, दामोदर जोशी’देवांशु’ , मोहन जोशी, डॉ. सरस्वती कोहली, होशियार सिंह ज्याला , डॉ. हरीश अण्ड़ोला, त्रिभुवन जलाल , आनन्द सिंह कड़ाकोटी,प्रभा बिष्ट, गिरीश मठपाल, विनोद राठौर, ठाकुरपाल सिंह, दयाशंकर गिरी आदि सभी सहयोगियों व प्रतिभागियों में किरन, हिमांशी ,दिव्यांशु,पूजा,प्रियांशी देशवाल,हर्षित डंगवाल, मोहित जोशी आदि का आभार व्यक्त किया गया। सूक्ष्म जलपान के साथ मातृभाषा कक्षा का सफल समापन हुआ।
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मातृभाषा कक्षाओं का हुआ समापन

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