आदर्श राजकीय इंटर कॉलेज लामाचौड़ के विद्यार्थियों ने कालाढूंगी में स्थित लोहे की भट्टी और हनुमान धाम का शैक्षिक भ्रमण किया। यह भ्रमण समग्र शिक्षा अभियान की वित्तीय सहायता और दिशा-निर्देशों के तहत किया गया । यह भ्रमण विद्यार्थियों के ज्ञान और अनुभव में वृद्धि करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था । इस शैक्षिक भ्रमण का समन्वयन समग्र शिक्षा प्रभारी योगेश चंद्र जोशी ने किया।
यात्रा से पहले प्रधानाचार्य कौस्तुभानन्द लोहनी ने विद्यार्थियों को अनुशासन का पालन करने और यात्रा के दौरान महत्वपूर्ण तथ्यों को नोटबुक में दर्ज करने का निर्देश दिया। इसके लिए विद्यालय की ओर से प्रत्येक विद्यार्थी को एक नोटबुक और पेन वितरित किया गया।
विद्यालय परिसर में एकत्र होने के बाद भ्रमण दल हल्द्वानी-रामनगर मोटर मार्ग से होते हुए, कालाढूंगी पहुँचा। यहाँ बच्चों ने उत्तर भारत की प्रथम लोहे की भट्टी को देखा । यह भट्टी भारतीय इतिहास और उद्योग के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। पर्यटक गाइडों ने बच्चों को बताया कि
कालाढूंगी की यह भट्टी ब्रिटिशकाल में सन् 1858 में डेविड एंड कंपनी द्वारा स्थापित की गई थी। इसे उत्तर भारत की सबसे बड़ी आयरन फाउंड्री के रूप में जाना जाता है। इस फाउंड्री का उद्देश्य कुमाऊं क्षेत्र का आर्थिक और औद्योगिक विकास करना था। इस फाउंड्री में कालाढूंगी के लगभग 250 परिवारों को रोजगार प्राप्त हुआ था। विश्वविख्यात जिम कॉर्बेट ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक *”माई इंडिया”* में इस फाउंड्री का उल्लेख किया है।
हालाँकि, जंगलों के विनाश और पर्यावरणीय चिंताओं के कारण इस फाउंड्री को बंद कर दिया गया। कालाढूंगी में बहने वाली सिंचाई नहर इस फाउंड्री का अभिन्न हिस्सा थी। पहाड़ों से पानी एकत्र कर इस नहर के माध्यम से लाया जाता था, जो लोहे को ठंडा करने के लिए उपयोग में लाया जाता था।
कालाढूंगी नाम की उत्पत्ति के विषय में गाइडों ने बताया कि पहाड़ी भाषा में काले पत्थर को ‘काल ढूंग’ कहा जाता है। इस क्षेत्र में लोहे मिश्रित काले पत्थरों की प्रचुरता के कारण इसका नाम कालाढूंगी पड़ा। आज भी इस भट्टी के आस-पास ऐसे पत्थर देखने को मिलते हैं, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को प्रमाणित करते हैं।
कालाढूंगी भ्रमण के बाद, विद्यार्थियों और भ्रमण में शामिल शिक्षक रामनगर स्थित प्रसिद्ध हनुमान धाम
पहुँचे। मंदिर की भव्यता और वास्तुकला ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। यहाँ हनुमान जी के विविध रूपों के दर्शन करने का अवसर प्राप्त हुआ।
मंदिर के इतिहास की जानकारी देते हुए स्थानीय लोगों ने भ्रमण दल को बताया कि इसका उद्घाटन 2016 में तत्कालीन राज्यपाल के.के. पॉल द्वारा किया गया था।
यहाँ प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। मंगलवार को मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है। मंदिर के दर्शन का समय प्रातः 5 बजे से शाम 8 बजे तक है।
इस यात्रा में प्रधानाचार्य कौस्तुभानन्द लोहनी के साथ शिक्षकों की टीम ने विद्यार्थियों की सुरक्षा, अनुशासन, और खाद्य सामग्री वितरण का कार्य पूरी निष्ठा से निभाया।
शिक्षकों में मोहन चंद्र जोशी, गिरीश चंद्र आर्य, राजेन्द्र मोहन पडलिया, मनोज पांडे, डी.सी. पंत, हरगोविंद पाठक, जशपाल सिंह, विद्या आर्य, सुमन लता, डॉ. सुधा पालीवाल, बृजेश्वरी बिष्ट, पूजा पांडे, डॉ. घनश्याम भट्ट और गणेश चंद्र उपाध्याय ने प्रमुख भूमिका निभाई।
इसके अतिरिक्त, कक्षा मॉनिटरों दीक्षा, काम्या, और एनएसएस स्वयंसेवकों दीपक पांडे, विनोद पडलिया, नदीम मुहम्मद, तनुज मालाड़ा ने अनुशासन और अन्य व्यवस्थाओं में सहयोग किया।
शैक्षिक भ्रमण दल के प्रभारी योगेश चंद्र जोशी ने बताया कि इस यात्रा ने विद्यार्थियों को न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों की जानकारी दी, बल्कि उनकी सोच और समझ को भी विस्तार दिया। ऐसे आयोजन विद्यार्थियों को नई बातें जानने और अपने अनुभवों को समृद्ध करने का अवसर प्रदान करते हैं। उन्होंने विद्यालय प्रशासन, शिक्षकों, और समग्र शिक्षा अभियान की इस पहल की सराहना की। उन्होंने इस भ्रमण को
शिक्षण और अनुभव का अद्वितीय संगम बताया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह भ्रमण लंबे समय तक विद्यार्थियों की स्मृतियों में बना रहेगा।