पुस्तक परिचय -समीक्षा के अभिनव सोपान समीक्षक डॉ उमेश चमोला

समीक्षा के अभिनव सोपान ,पुस्तक परिचय

समीक्षा के अभिनव सोपान डॉ पशुपतिनाथ उपाध्याय द्वारा सम्पादित पं ० गिरिमोहन गुरु के नवगीतों के भाव पक्ष और कला पक्ष के सूक्ष्म विश्लेषण का एक
सार्थक प्रयास है। पुस्तक में डॉ राधेश्याम बंधु (दिल्ली ),डॉ विनोद निगम (होशंगाबाद ),डॉ किशोर काबरा (गुजरात ),डॉ दयाकृष्ण विजयवर्गीय (राजस्थान ),डॉ महाश्वेता चतुर्वेदी (बरेली ),डॉ सूर्यप्रसाद शुक्ल (कानपुर ),प्रेमशंकर रघुवंशी (मध्य प्रदेश ),विजयलक्ष्मी विभा (इलाहाबाद ),मोहन भारतीय (भिलाई );डॉ छबिल कुमार मेहेर (मध्यप्रदेश ),महेन्द्र नेह (राजस्थान ),डॉ हर्षनारायण नीरव (मध्य प्रदेश ),गोपीनाथ कालभोर (मध्य प्रदेश ),अशोक गीते (मध्य प्रदेश ),डॉ मधुबाला (पटियाला ),डॉ जगदीश व्योम (उत्तर प्रदेश ),कुमार रविन्द्र (उत्तर प्रदेश ),डॉ गिरजा शंकर शर्मा (मध्य प्रदेश ),डॉ शरद नारायण खरे (मध्य प्रदेश ),कृष्ण स्वरूप शर्मा (मध्य प्रदेश ),डॉ कृष्ण गोपाल मिश्र (होशंगाबाद ),डॉ विजय महादेव गाड़े (महाराष्ट्र ),भगवती प्रसाद द्विवेदी (बिहार ),जगदीश श्रीवास्तव (मध्य प्रदेश ),सरिता सुराणा ‘जैन ‘(आन्ध्र ),श्रीकृष्ण शर्मा (छिंदवाड़ा ),राजेन्द्र सिंह गेहलोद (मध्य प्रदेश ),डॉ दिवाकर दिनेश गौड़ (राजस्थान ),नर्मदा प्रसाद मालवीय (मध्य प्रदेश ),डॉ नीलम महतो (बिहार ),डॉ रानी कमलेश अग्रवाल (हापुड़ ),प्रो ० भगवान दास जैन (गुजरात ),डॉ हरेराम पाठक “शब्दर्षि “(असम ),रामस्वरूप मूंदड़ा (राजस्थान ),यतीन्द्र नाथ राही (भोपाल ),डॉ अमर नाथ ‘अमर ‘(दिल्ली ),ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग ‘(उत्तर प्रदेश ),डॉ तिलक सिंह (उत्तर प्रदेश ),डॉ जयनाथ मणि त्रिपाठी (उत्तर प्रदेश ),मधुकर गौड़ (मुंबई ),डॉ मुचकुन्द शर्मा (बिहार ),समीर श्रीवास्तव (मध्य प्रदेश ) तथा डॉ उमेश चमोला (उत्तराखण्ड ) द्वारा पं ० गिरिमोहन गुरु के नवगीतों पर समीक्षात्मक दृष्टि डाली गयी है।
पुस्तक को पढ़कर पं ० गिरिमोहन गुरु के नवगीतों में समाहित विषयवस्तु ,नव्य चेतना ,शिल्प विधान और समाज के प्रति संवेदनशीलता व्यक्त होती है। सम्पादकीय में नवगीत परम्परा के इतिहास एवम संवर्द्धन के क्रमिक विकास पर प्रकाश डाला गया है। सम्पादक डॉ पशुपतिनाथ उपाध्याय ने पं ० गिरिमोहन गुरु के नवगीतों को समसामयिकता बोध से सिक्त ,युगीन आकाँक्षा -अभिलाषा से समन्वित एवम परिवेश जन्य सहजानुभूति के जीवंत दस्तावेज की संज्ञा दी है। पुस्तक ४४ समीक्षकों के माध्यम से पं ० गिरिमोहन गुरु के नवगीतों पर अखिल भारतीय विमर्श प्रस्तुत करती है। साथ ही पुस्तक नवगीत विधा के उदभव ,इससे जुड़े रचनाकार और नवगीत विधा पर एक स्पष्ट दृष्टि प्रस्तुत करती है।

अन्त में नवगीतकार का बुद्धिजीवियों और सत्ताधारियों पर व्यंग्य देखिए —
हर किरण पर धुंध का है आवरण ,
आग ने भी शान्ति सी कर ली वरण ,
सूर्य खुद मफलर गले में बांध ,
शीत का ऎलान करता है ,
एक कोने में दुबक दीपक निबल ,
शीत का ऐलान करता है।
पुस्तक प्रकाशक –शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदापुरम मध्य प्रदेश।

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