उत्तराखंड में विगत दिनों एक के बाद एक हुई सड़क दुर्घटनाओं ने आम जन की चिंता को बढ़ा दिया है। हाल ही में देहरादून में हुई दुर्घटना ने युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति तथा घातक जीवन शैली के प्रति आम जन को सोचने पर विवश कर दिया है। सड़कें विकास की जीवन रेखा होती है। वर्तमान समय में सड़कों के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए हर सड़क उपयोगकर्ता का दायित्व बनता है कि वह सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन करे। वाहनों की गति पर नियंत्रण रखे। नशे में वाहन न चलाये। अनावश्यक ओवरटेक न करे।
अगर हर सड़क उपयोगकर्ता इन बातों का ध्यान रखें तो सड़क दुर्घटनायें होंगी ही नहीं। आखिर सड़क सुरक्षा नियम हमारी सुरक्षा के लिए ही तो बने हैं। जिस दिन हमारे मन में यह भाव स्थाई रूप से जगह बना लेगा, उस दिन से सड़क दुर्घटनाओं में न्यूनता आ जाएगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्तर पर 1.35 मिलियन से अधिक मौतें सड़क दुर्घटनाओं से होती हैं । विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 18 से 45 आयु वर्ग के लोगों की सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मृत्यु दर 69% है। जिन युवाओं से समाज की अपेक्षा है। जिन्होंने देश की प्रगति में योगदान देना है,अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करना है उनका कम उम्र में ही यों काल कवलित होना बहुत ही दुखपूर्ण है। इससे भी दुखद उनके माता-पिता और अभिभावकों के सपनों के महल का चूर -चूर हो जाना है और उनके जीवन में अंधकार आना है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सड़क दुर्घटना सुरक्षा नियमावली बनाने के लिए विशेषज्ञों की समिति गठित करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही पुलिस को रात्रिकालीन गस्त के दौरान एल्कोमीटर के साथ जांच करने और तेज गति के साथ वाहन चलाने वालों पर कठोर कार्रवाई करने के लिए भी निर्देशित किया गया है। आशा की जानी चाहिए कि मुख्यमंत्री के इन निर्देशों का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
निर्देशों से भी अधिक अहम प्रश्न यह है कि हर सड़क उपयोगकर्ता कब स्वअनुशासित होकर अपनी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होना सीखेगा?






